नीरा यादव और पहला कदम से अनिता अग्रवाल

इंजीनियर डॉक्टर न सही पर रोजगार के लिए तैयार हो दिव्यांग बच्चें-अनिता अग्रवाल

-युधिष्ठिर महतो(कुमार युडी)
धनबाद,09 जून 2017(नेशनल टुडे लाइव ).पहला कदम दिव्यांग बच्चों के स्कूल की संचालिका अनीता अग्रवाल का जन्म 04 अप्रैल 1978 को झुमरीतिल्लेया कोडरमा में हुआ.स्कूली शिक्षा कोडरमा से ही सीडी गर्ल्स हाई स्कूल से हुई.कॉलेज की पढाई एफएम कॉलेज बालेश्वर ओड़िसा से हुई.स्नातक की शिक्षा बीसी कॉलेज आसनसोल से हुई.मारवाड़ी परिवार से सम्बन्ध रखने के बावजूद अपने घर की पहली लड़की हुई.जिन्होंने उच्च शिक्षा हासिल की.साथ पढाई के अलावे अनीता अग्रवाल एक राज्यस्तरीय खिलाडी भी रह चुकी हैं.बैडमिंटन और बॉलीबॉल में कैप्टेन रह चुकी हैं.यह सब कुछ संभव हुआ.इनके जूनून और म्हणत की वजह से.अगर इन्हें घर से थोडा सा और सहमती मिली होती,तो शायद आज अनीता अग्रवाल राष्ट्रीय स्तर की खिलाडी होती.पर,कहते हैं कि हर इन्सान की ज़िन्दगी में सब कुछ टी होता हैं.कब क्या होना?किसे क्या मुकाम मिलना हैं?यह भी पहले से ही रास्ता बना होता हैं.घर में सहमती नहीं मिली.फिर,जो हर लड़की के लिए एक रिवाज़ हैं कि बेटी पराया धन होती हैं.पढाई लिखाई हो गयी.तो,अब शादी कर देनी चाहिए.ठीक वैसा ही अनीता अग्रवाल के साथ भी हुआ.खेल की दुनिया को छोड़ इन्होने अपना घर बसा लिया.10 जुलाई 1999 को अनिल अग्रवाल के साथ इनकी शादी हो गयी.हर सामान्य लड़की की तरह इन्होने भी अपने सारे सपने भुलाकर अपने ससुराल को ही अपना सब कुछ मान लिया.एक हाउसवाइफ के रूप में इन्होने अपनी ज़िन्दगी को जीना ही सबकुछ मानने लगी.सबकुछ एक सामान्य रूप से पारिवारिक ज़िन्दगी चल रही थी.साल 2000 को बड़े बेटे प्रतिक अग्रवाल का जन्म हुआ.जो अभी वर्तमान में राज्य स्तर का चेस प्लेयर हैं.पर जब साल 2001 को छोटे बेटे कौशल अग्रवाल का जन्म हुआ.तब से अनीता अग्रवाल की ज़िन्दगी में एक बदलाव आया.कौशल एक दिव्यांग बच्चा हैं.जिसके इलाज के लिए अनीता अग्रवाल और उनके पति ने भारत के कई राज्यों के चक्कर लगाये.फिर,यही से एक प्रेरणास्रोत हुआ उसका छोटा बेटा.


अनीता अग्रवाल ने एक माँ के रूप में दिव्यांग बच्चे की तकलीफ को समझा.उन सभी माता पिता के दर्द को समझा.तभी,उसी वक़्त इन्होने अपने मन में ठान लिया कि अपने बच्चे के जैसे ही उन सभी दिव्यांग बच्चों के लिए भी कुछ करना हैं.जो कौशल के तरह ही दिव्यांग हैं.सिर्फ कौशल ही न्हीओं बल्कि समाज के उन सभी बच्चों के लिए कुछ ऐसा करना हैं.जिससे वे सामान्य की तरह ही अपने लिए रोजगार का सृजन कर सके.भले ही दिव्यांग बच्चे इंजिनियर,डॉक्टर,या एनी बड़े अधिकारी न बन सके.पर उनमे यह काबिलियत होनी चाहिए की.वे भी खुद के लिए वो सब कुछ कर सके.जो दुसरे अपने लिए करते हैं.किसी के भी सहयोग पर दिव्यांग बच्चें निर्भर न रहें.अनीता अग्रवाल ने अब यह जिद पकड़ ली थी कि धनबाद ही नहीं बल्कि पुरे झारखण्ड में एक ऐसे स्कूल की नीव रखनी हैं.जो हर प्रकार से दिव्यांग बच्चों के लिए बेहतर हो.जहाँ सभी प्रकार की सुविधाए उपलब्ध हो.इसी सोच के साथ शादी के 10 साल बाद 2009 में नारायणी चैरिटेबल ट्रस्ट के अन्त्र्गार्ट पहला कदम स्कूल की शुरुआत हुई.2 बच्चों से पहले अपने घर से ही पति अनिल अग्रवाल के सहयोग से इसकी शुरुआत हुई.शुरू-शुरू में घर परिवार और समाज के लोगों से साकारात्मक सहयोग नहीं मिला.लोगों की कई नकारात्मक टिप्पणी सुनने को मिली.पर,धीरे-धीरे समज के लोगों का साथ मिलने लगा.जिसकी वजह से आज पहला कदम स्कूल में सेकड़ो बच्चे हैं.जो निःशुल्क शिक्षा ग्रहण कर रहें हैं.पहला में पढने वाले दिव्यांग बच्चों को स्कूल के तरफ से ही यूनिफार्म ,किताब,कॉपी व् जरूरत की चीजे डी जाती हैं.ताकि दिव्यांग बच्चे सही से पढाई कर सके.आज हर महीने कम से कम 15 बच्चे पढने के लिए आ ही जाते हैं.


हमारे समाज में हर 500 में से 1 बच्चा दिव्यांग होता हैं.पर इनके लिए कोई सुविधा नहीं होती हैं.इनके नाम पर कई सरकारी योजनाये चलायी जाती हैं.पर उन योजनाओं का लाभ इन तक पहुँचता ही नहीं हैं.अनीता अग्रवाल ने अपने मेहनत और लगन से ही समाज के लोगों में जागरूकता लायी हैं.अब माता पिता दिव्यांग बच्चों को चारदीवारी में न रखकर स्कूल भी भेजने लगे हैं.पहले से स्तिथि काफी बदली हैं.अब अनीता अग्रवाल का बस एक ही सपना हैं कि धनबाद में ही नही बल्कि पुरे झारखण्ड में दिव्यांग बच्चों के लिए एक स्कूल हो.जहाँ हर प्रकार की सुविधाए हो.जैसे होस्टल,खेल का मैदान व अन्य सुविधाएं।जिससे इन दिव्यांग बच्चों का भविष्य उज्ज्वल हो।पर यह तभी संभव हैं।जब समाज व सरकार का सहयोग मिले।कई बड़े नेता,विधायक,सांसद व मंत्री द्वारा पहला कदम के बच्चों के लिए आश्वासन मिलता हैं।पर,सहायता के लिए कुछ ही लोग आगे आते हैं।अनिता अग्रवाल एक महिला होते हुए भी इस मुहिम को लेकर दिव्यांग बच्चों के लिए संघर्ष कर रही हैं।आगे भी करती ही रहेगी।इन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया हैं कि अब इन दिव्यांग बच्चों के लिए ही कुछ कर के जाना हैं।


                                   
                           

                             -छायाकार संतोष कुमार यादव

                              -सरताज खान की रिपोर्ट

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