खोरठा भाषी हैं करोड़ो में,फिर भी झारखण्ड फ़िल्म समिति में नहीं मिला स्थान।

धनबाद।झारखण्ड फ़िल्म तकनीकी सलाहकार समिति द्वारा एक बार पुनः खोरठा भाषी ठगे गए।झारखण्ड सरकार से सम्मानित खोरठा गीतकार विनय तिवारी ने आपत्ति जताते हुए कहा कि यह बार-बार क्यों किया जा रहा हैं?खोरठा भाषा को समिति बार-बार दरकिनार क्यों कर रही हैं?अन्य भाषाओं को जगह दी जा रही हैं।पर सिर्फ खोरठा भाषा के साथ ही ऐसा किया जा रहा हैं।जब फ़िल्म नीति से सम्बंधित किताब प्रकाशित की गई।तो उसमें भी खोरठा भाषा का ज़िक्र नहीं किया गया।कई बार समिति ने संशौधन भी किये।पर खोरठा भाषा को दरकिनार कर अन्य भाषा को शामिल की गई।क्या इन करोड़ो खोरठा भाषियों के लिए समिति में कोई जगह नहीं।यह कैसी राजनीति की जा रही हैं?जो कला के क्षेत्र में भी एकतरफा व्यवहार कर रही हैं।विनय तिवारी ने यह भी कहा कि शुरुआत में जब समिति में विभिन्न भाषाओं जुड़े लोगों को सदस्य के रूप में शामिल की जा रही थी।तब भी खोरठा भाषा से जुड़े एक भी कलाकार को शामिल नहीं किया गया।यह दुर्भाग्य की बात हैं।अभी हाल ही में आंशिक संशौधन के आधार पर अन्य भाषाओं को सम्मिलित किया गया।पर,खोरठा भाषा का ज़िक्र ही नहीं।इस विषय को लेकर विनय तिवारी ने अपने नेतृत्व में कई बार आंदोलन भी किया।कई बार इन्हें आश्वासन भी दिया गया कि अब खोरठा भाषा को भी जगह दी जाएगी।पर हर बार छल किया जा रहा हैं।क्या खोरठा भाषा ने झारखण्ड की कला संस्कृति में योगदान नहीं दिया हैं?क्या खोरठा भाषी लोगों की संख्या झारखंड में नहीं हैं?हर सवाल का जवाब हैं कि खोरठा भाषी कलाकार और खोरठा भाषी अन्य भाषा की तुलना में अधिक हैं।अन्य भाषाओं से पूर्व खोरठा भाषा को जगह दिया जाना चाहिए था।पर ऐसा न हो सका।विनय तिवारी कभी कभी बहुत ही भावुक हो जाते हैं।वे कहते हैं कि खोरठा गीत संगीत को उन्होंने अपना जीवन दिया।पर आज ऐसी स्तिथि देख रहा नहीं जाता हैं।खोरठा साहित्यकार से लेकर स्कूल कॉलेज में खोरठा भाषा की पढ़ाई भी होती हैं।पर इस तरह समिति में बार बार दरकिनार करना बहुत ही अपमान की बात हैं।अगर यही रवैया रहा तो खोरठा भाषा कल अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करेंगे।जबकि,झारखंड की कला संस्कृति को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में खोरठा भाषी कलाकारों ने बहुत महत्पूर्ण योगदान दिया हैं।

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