धनबाद के राष्ट्रीय स्तर के पहलवान,अपनी पहचान छिपा खुद ही हो गए हैं गुमनाम।
★युधिष्ठिर महतो(कुमार युडी)।
जामाडोबा,धनबाद।विरेन्द्र यादव कभी पहलवानी में मिली सफलता की वजह से मशहूर थे।पर यह राष्ट्रीय स्तर तक खेल चुका यह खिलाड़ी,आज अपनी पहचान का मौहताज हैं।कभी पहलवानी के दम पर टाटा में नौकरी किया करते थे।पर एक समय ऐसा आया।जब इन्हें नौकरी छोड़नी पड़ी।टाटा कंपनी ने स्पोर्ट्स कोटा से पहलवानी को ही हटा दिया।पिताजी धनबाद में ही टाटा कंपनी में नौकरी किया करते थे।पहलवानी से ही उनके पिता ने टाटा कंपनी जॉइन की थी।वीरेंद्र 1980 में अपने आगे की पढ़ाई करने के लिए धनबाद अपने पिता के यहाँ चले आये।इससे पहले ये भोजपुर आरा में रहा करते थे।वहाँ इन्होंने आठवीं तक की पढ़ाई की।फिर दशवी की पढ़ाई के लिए कोयलांचल चले आये।इसी दौरान वीरेंद्र राजमणि साहेब से पहलवानी सीखने लगे।जो टाटा कंपनी के कोच थे।
पहलवानी का दौर इसी तरह आगे बढ़ता गया।पहले जूनियर बिहार से शुरुआत किये।जिसमें वे विजेता भी रहें।5 सालों तक लगातार सीखते रहें।वे पहला नेशनल गेम के बाद ही टाटा कंपनी में नौकरी 1992 में मिल गयी।जॉब के साथ पहलवानी भी करते रहें।पर 1996 में ही पहलवानी कोटे को टाटा कंपनी ने बन्द कर दिया।कंपनी परिवार को वेतन का आधा हिस्सा देती हैं।इनका पहलवानी में आना इनके पिता ही आदर्श बने।आज युवाओं की रुचि भी बहुत कम हैं और सरकार भी कोई खास ध्यान नहीं दे रही हैं।इन्हें राष्ट्रीय स्तर पर कई सम्मान भी मिल चुका हैं।धनबाद में पहलवानी के लिए जो भी अखाड़ा भी हैं।वो सब बन्द हैं।
★रिपोर्टर:-सरताज खान
★फोटोग्राफर:-संतोष कु. यादव
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