बाल विवाह 21 वी शताब्दी की सबसे बढ़ी त्रासदी -शंकर रवानी।

 

बाल विवाह 21 वी शताब्दी की
सबसे बढ़ी त्रासदी -शंकर रवानी।

 

धनबाद,07,अगस्त,झारखण्ड ग्रामीण विकास ट्रस्ट, धनबाद के अध्यक्ष एवं बाल कल्याण समिति, धनबाद के सदस्य शंकर रवानी ने प्रेस बिज्ञप्ति जारी कर कहा है कि 21 वी शताब्दी की सबसे त्रासदी की बात बाल विवाह के रूप में बच्चों के अधिकारों एवं स्वंत्रन्त्रता का हनन करने से है । जो बच्चे पढ़ लिख कर अपने पैरों पर आत्मनिर्भर एवं स्वाबलंबी बन पाएंगे , उनकी आजादी , उनके अधिकारों की निजता को छोड़ कर उन्हें आजीवन परनिर्भरता की गंदी दुनिया में धकेल देना । श्री रवानी ने आगे कहा कि भारत में बाल विवाह एक सामाजिक कुरीति के रूप में देखी जाती है । बाल विवाह की परिभाषा , लड़की की उम्र 18 वर्ष से कम एवं लड़के की उम्र 21 वर्ष से कम के रूप में परिभाषित की गयी है । बाल विवाह में मुख्य रूप से बच्चों के अधिकारों के दुरुपयोग के रूप में बल दी जाती है । बाल विवाह की परिकल्पना दिल्ली सल्तनत के समय से ही अस्तित्व में आयी थी जब राजशाही प्रथा प्रचलन में थी । रवानी ने कहा कि भारत में बाल विवाह कर लड़कियों को विदेशों में लेजाकर बलात्कार एवं यौन उत्पीड़न की जाती थी । साथ ही साथ बढ़े बुजुर्ग भी अपने पोतों को देखने की चाह में कम आयु में बच्चों की शादी कर दिया करते थे जिससे मरने से पहले वे अपने पौत्रों के साथ कुछ समय व्यतीत कर सकें । बाल विवाह का स्वरूप में धीरे धीरे बदलाव होते गये पर बच्चों के अधिकारों का हनन बदस्तूर जारी है । राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आधार पर , भारत में सवार्धिक बाल विवाह का प्रचलन बिहार 69 % , राजस्थान 65 % , झारखंड 63 % , मध्यप्रदेश 57 % में देखी जा रही है , वहीं देश में बाल विवाह का कम प्रचलन गोआ 12.1 % , हिमाचल प्रदेश 12.3 % , मणिपुर 12.9 % है । भारत में बाल विवाह केरल राज्य जहाँ की सर्वाधिक पढ़े लिखे व्यक्ति हैं , में भी बाल विवाह का चलन दिखता है । रवानी ने कहा कि यूनिसेफ के रिपोर्ट के अनुसार , भारत के ग्रामीण छेत्रों में नगरीय छेत्रों की अपेक्षा अधिक बाल विवाह होते हैं । बाल विवाह का प्रभाव ( Effect of child marriage ) – बचपन खो जाना , बाल अधिकार का हनन , खेलने व सीखने की स्वंत्रन्त्रता समाप्त , कम उम्र से जबाबदेही निभाना , कच्ची उम्र में गर्भधारण के चलते जान का खतरा , ऐसे माँ के बच्चे कुपोषित , जन्म के समय कम वजन का होना , परिपक्वता का अभाव , लड़कियों में खून की कमी , कम उम्र में असुरक्षित यौन संबंध – अपरिपक्व शरीर में बालिका का गर्भधारण करना , गर्भपात , माता में कुपोषण , माता में प्रजनन मार्ग में संक्रमण , यौन संचरित बीमारियां , HIV संक्रमण की संभावना में वृद्धि , भ्रूण का रूप पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पाना , माता के शरीर विकास का अभाव , अच्छा स्वास्थ्य पोषण शिक्षा पाने के अधिकार से वंचित , स्वस्थ व दीर्घायु संतान को जन्म न दे पाना , परिवार नियोजन के प्रति सजगता का अभाव , पैदा होने वाले नवजात शिशुओं के उचित पालन पोषण का अभाव , विकास कार्यों में बाधा , घरेलू हिंसा , सेक्स संबंधी ज्यादती , सामाजिक वहिष्कार शिकार , शिशु म्रत्यु दर अधिकतम , शारिरिक मानसिक सामाजिक विकास गौण , आत्मनिर्भर / स्वाबलंबी बनने का अभाव , सुरक्षा के अधिकार का उल्लंघन , व्यतित्व का विकास अवरुद्ध , विभिन्न दुर्व्यवहार का शिकार , आदि । कारण ( causes ) – गरीबी , लड़कियों की शिक्षा का निचला स्तर , लड़कियों को बोझ समझना उन्हें कम महत्व देना , सामाजिक प्रथाएं , अज्ञानता , धार्मिक / सामाजिक मान्यताएं , रीतिरिवाज , अ शिक्षा , दहेज प्रथा , कम पढ़े लिखे लोगों में अंधविश्वास आदि ।रवानी ने कहा कि यूनिसेफ के रिपोर्ट के अनुसार , भारत में 40 % बाल विवाह होते हैं जिनमें 49 %लड़कियों का विवाह 18 वर्ष से कम आयु में ही हो जाती है । राजस्थान , बिहार , झारखंड , मध्यप्रदेश , उत्तरप्रदेश , पश्चिम बंगाल में बाल विवाह का स्वरूप प्रचलित है । राजस्थान में 82 % विवाह 18 साल से पहले कर दी जाती है । देश में बाल विवाह धढ़ले से हो रहे हैं । बाल विवाह जैसी कुप्रथा का अंत अभी तक नहीं हुई है । देश में 47 % लड़कियों की शादी 18 वर्ष से कम उम्र में की जाती है । 22 % लड़कियां 18 वर्ष से पहले माँ बन जा रही हैं । देश की 20 से 24 वर्ष की 47 % महिलाओं की विवाह 18 वर्ष से पहले हो चुकी है । इनमें से 56 % मामले ग्रामीण इलाकों के हैं । विश्व का 40 % बाल विवाह भारत में हो रही है । देश में बाल विवाह की स्थिति भयावह है । बिहार , झारखंड , पश्चिम बंगाल में लगातार ऐसे विवाह करवाये जा रहे हैं । रोकथाम के उपाय – 1928 मे पहली बार शारदा एक्ट बनायी गयी थी जो 1929 मे पारित की गयी थी के अनुसार,नाबालिग लड़के व लड़कियों के विवाह करने पर जुर्माना व कैद का प्रावधान , जिसका संशोधन 1978 में संसद ने किया जिसे बाल विवाह निवारण कानून की संज्ञा दी गयी के अनुसार , विवाह के आयु लड़कियों के लिये कम से कम 18 साल और लड़कों के लिये 21 साल निर्धारित की गयी। इसके उपरांत , बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 बनाये गये , जिसके धारा 9 , धारा 10 के तहत , बाल विवाह के आयोजन पर दो वर्ष तक कठोर कारावास एवँ एक लाख रुपये जुर्माना या दोनो से दंडित करने का प्रावधान है । बाल विवाह निरोधक कानून का सख्ती से अनुपालन करवा कर बाल विवाह में कमी लायी जा सकती है । जिले के प्रत्येक प्रखंड में प्रखंड पदाधिकारी को बाल विवाह निषेध पदाधिकारी नियुक्त की गयी है जिनका कार्य बाल विवाह कि धटना चिन्हित होने पर स्थानीय प्रशासन की मदद से अविलम्ब रोकथाम करनी है । विवाह के लिये इस अधिनियम में लड़कों की उम्र कम से कम 21 एवं लड़कियों की कम से कम 18 वर्ष निर्धारित की गयी है । अगर कोई व्यक्ति /अभिभावक अपने बच्चों की शादी इस उम्र विशेष से पहले तय करते हैं तो उसके लिये सजा का प्रावधान किया गया है । बाल विवाह में शरीक होने वाले सभी व्यक्तियों के लिये सजा निर्धारित की गयी है । रवानी ने कहा कि बाल विवाह एक अपराध की श्रेणी में आता है इसलिए इसकी रोकथाम में समाज के प्रत्येक व्यक्ति को आगे आकर आवाज उठाने की जरूरत है । 15 वर्ष से कम उम्र में माँ बनने से मातृ मृत्यु की संभावना 20 वर्ष की उम्र में माँ बनने से पाँच गुना अधिक होती है । बाल विवाह से निजात पाने के लिये सामाजिक जागरूकता की जरूरत है । साथ ही साथ बाल अधिकारों के बारे में सविस्तार चर्चा एवं मीडिया की भी इस कुप्रथा को दूर करने में सशक्त भूमिका की जरूरत है । बाल विवाह की रोकथाम लिये जिला , प्रखंडों , पंचायत समिति , ग्राम पंचायत छेत्रों में बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम के संबंधित प्रावधानों की अद्यतन सारगर्भित जानकारी आमजनों तक सहज रूप में पहुँच बनाना । साथ ही साथ Legal literacy camp में न्यायिक अधिकारी पीड़ित प्रतिकर स्कीम 2011 के प्रावधानों की समुचित जानकारी उपलब्ध करवाना । हमारे देश में बाल विवाह निरोधक कानून का व्यापक पैमाने पर उलंघन होता दिख रहा है क्योंकि बाल विवाह की घटना लगातार पुनरावृत्ति की ओर है । जागरूकता अभियान की लगातार जरूरत है । इसके दुष्परिणाम को बताने की जरूरत है । साथ ही कानून का अनुपालन हो ,किशोर न्याय अधिनियम की जानकारी ग्राम पंचायत स्तर से सहज हो पाये । जब तक बच्चों का सही व्यक्त्वि का विकास नहीं हो पायेगा , तब तक सशक्त राष्ट्र की परिकल्पना को हम मूर्त रूप नहीं दे सकते । बच्चे ही भावी देश के निर्माता हैं अतः इन्हें हम स्वस्थ , संवर्धित परिवेश दे पायें ताकि बच्चों का सर्वांगीण विकास हो पाये एवं समृद्ध समाज का निर्माण में हमारी सहभागिता हो पाये ।

शंकर रवानी
अध्यक्ष
झारखण्ड ग्रामीण विकास ट्रस्ट, धनबाद।

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