भर पेट खाना भी नसीब नहीं होता था,35 रुपये में करता था कार्यक्रम-बादल पाल।
●युधिष्ठिर महतो(कुमार युडी)।
धनबाद।बादल कुम्भकार जो बादल पाल के नाम से झारखण्ड और पश्चिम बंगाल में काफी लोकप्रिय हैं।मूल रूप से ये बोकारो जिला में चंदनकियारी प्रखण्ड व सियालजोड़ी पंचायत के तेतुलिया गाँव के निवासी हैं।वर्तमान में कोलाकुसमा में रह रहें हैं।मानभूम लोक गायक के रूप में इनकी एक अलग ही पहचान हैं।खेपादास बाउल सम्प्रदाय के नाम से इनका एक अपना ग्रुप भी हैं।जो राँची से पंजीकृत हैं।बचपन के जिस उम्र में बच्चें खेलने और पढ़ने में व्यस्त रहते हैं।उस उम्र में इन्होंने संगीत से मित्रता कर ली।8 साल की उम्र से संगीत सीखना शुरू कर दिया।घर में पारिवारिक स्तिथि बहुत ही दयनीय थी।परिवार में 10 से 12 सदस्य हुआ करते थे और सबका भरण पोषण एक ही व्यक्ति के द्वारा किया जाता था।ऐसी परिस्तिथि में संगीत सीखना बहुत ही कठिन था।पास में इतने पैसे भी नहीं थे कि किसी अच्छे संगीत गुरु से सीख सकें।ऐसे में एक संगीत शिक्षक मधुसूधन दास हुआ करते थे।जिनसे बादल पाल मुफ्त में सीखा करते थे।कभी कभी गुरुजी को खाना खिला दिया करते थे।पर,पैसे नहीं दे पाते थे।पिता गोपाल चंद्र कुम्भकार जन वितरण की दुकान चलाते थे।घर में ऐसी स्तिथि थी कि अगर कोई कपड़ा छोटा हो जाया करता था।तो,उसे परिवार में किसी अन्य को दे दिया जाता था।इतनी तंगी की परेशानी के बावजूद कभी हार नहीं माने।मन मे कुछ कर गुजरने का हुनर था।इसमें लगे और आगे बढ़ते गए।1987 से लेकर 2002 तक संगीत सीखते रहें।घर की स्तिथि इतनी खराब हो गयी कि संगीत को छोड़ने का मन बना चुके थे।लेकिन,संगीत को साथ मे रखे।इसे जीने का जरिया न बनाकर अतिरिक्त में करते रहें।हॉकर का व्यवसाय किये।तो,कभी सब्जी भी भेजा करते थे।साईकिल से चला करते थे।महज 700 से 1300 की बुकिंग पर गाँव-गाँव कार्यक्रम किया करते थे।कभी ऐसा भी हुआ कि कार्यक्रम करने के लिए सिर्फ 35 रुपये ही मिलता था।इस तरह से संघर्ष का दौर जारी रहा।घर मे भी बहुत डाँट फटकार मिलती थी।भर पेट खाना भी नसीब नहीं होता था।कई बार यहाँ तक कह दिया जाता था कि काम करों या घर छोड़ कर चले जाओ।उस समय 250 रुपये में एक ढोलकी खरीद कर अभ्यास किया करते थे।क्योंकि इतना तो पैसा था नहीं कि म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट ले सकें।पहनने तक कपड़े भी नहीं होते थे।एक ही जोड़ी कपड़े से साल भर कार्यक्रम किया करते थे।कुछ पैसे 6 महीनें साल भर तक बचाने के बाद वर्ष 2000 में पहला एल्बम ए जुगेर चेगड़ा छेले बाबला म्यूजिक के सौजन्य से बनाये।जो बुरी तरह से फ्लॉप साबित हुआ। शुरुआत में ही फ्लॉप देने के बाद भी बादल पाल ने प्रयास कर अपना दूसरा एल्बम तुमी दादार छोटो शाली बनाई।यह भी फ्लॉप हुई।पर हिम्मत कभी नहीं हारी।मन में विश्वास था कि सफल तो होना ही हैं।इस तरह से खुद ही पैसे का जुगाड़ कर काम करते रहें।पर सफलता का दौर वर्ष 2009 से शुरू हुआ।जब एल्बम आगे आमनी जेमनी छिली तेमनी कोरी दे रिलीज हुआ।यह सुपरहिट साबित हुई और इस एल्बम के बाद से इनकी ज़िन्दगी बदल गयी।एमवीएम म्यूजिक कंपनी से काम का ऑफर भी मिलने लगा।
लोकप्रियता इतनी बढ़ गयी कि सोनाली फ़िल्म प्रोडक्शन धनबाद से भी काम मिलने लगा।डायरेक्टर प्रमोद गोराई से अभी भी इनका काम चल ही रहा हैं।दशक म्यूजिक एल्बम करने के बाद एक फ़िल्म भी बनाई बापेरो बाप आछे।बहुत ही छोटी बजट की यह फ़िल्म थी।जो बंगाल में रिलीज भी हुई।पर,कुछ आर्थिक कमीं की वजह से फ़िल्म पूरी तरह से फ्लॉप साबित हुई। 1997 में इनका विवाह हो गया था।जिस वजह से पारिवारिक दबाव भी काफी बढ़ गया था।सब कुछ देखते हुए मंजिल की और बढ़ते गए।म्यूजिक एल्बम और फ़िल्म करने के बाद आज इनकी लोकप्रियता चरम सीमा पर हैं।आज इनकी ज़िन्दगी बहुत बदल चुकी हैं।न ही काम की कमी हैं और न ही किसी तरह की परेशानी।एक खुशहाल परिवार हैं।जिनके साथ इनका जीवन आराम से गुजर रहा हैं।पर अन्य राज्यों के मुकाबले झारखण्ड में कोई कलाकारों के लिए कोई सहयोग या सुविधा न होने से बहुत ही दुःखी हैं।क्योंकि,कलाकार जब तक काम कर सकता हैं।तभी तक वह अपनी जीविका चला सकता हैं।पर जब काम करने में असमर्थ होंगे।उस समय इनकी जीविका कैसे चलेगी?झारखण्ड की तुलना में बंगाल में हर कलाकार को मासिक भत्ता दिया जाता हैं।साथ ही एक आईडी प्रूफ भी दिया जाता हैं।चाहे एक बड़ा कलाकार हो या एक छोटा कलाकर सभी को जिले स्तर पर चुन कर ऑडिशन लेकर चयनित किया जाता हैं।फिर उन्हें आईडी कार्ड और मासिक पेंशन की सुविधा दी जा रही हैं।पर झारखण्ड में ऐसा कुछ भी नहीं हैं।
कला सांस्कृतिक मंत्री माननीय अमर बाउरी से मिलकर बादल पाल कई बार इस बात को लेकर चर्चा कर चुके हैं।पर कोई हल नहीं निकला,सिर्फ आश्वासन ही मिला।जबकि,चुनाव प्रचार के समय बादल पाल अमर बाउरी के स्वयं जा जाकर अपने गीतों के माध्यम से प्रचार प्रसार करते थे।बादल पाल का कहना हैं कि बड़ी बड़ी फिल्म सिटी या समिति बन जाने से सुचारू काम नहीं होगी।जमीनी स्तर से कुछ करना होगा।हर जिले में एकैडमी होनी चाहिए।साथ ही मनोरंजन कर में कमी भी लानी चाहिए।वर्तमान में फ़िल्म और संगीत से जुड़े सभी कलाकारों की स्तिथि झारखण्ड में दयनीय हैं।इसके विकास में सरकार व व्यापारी की भूमिका हैं।झारखण्ड में जो भी कला से जुड़ा कार्यक्रम होता हो।उनमे यहाँ के कलाकारों को भी काम मिलना चाहिए।जिला स्तर पर सुचारू रूप से कला बोर्ड का गठन होना चाहिए।
बादल पाल अपना आदर्श गोष्टों गोपाल दास को मानते हैं।जो बाउल संगीत की दुनिया में किशोर कुमार के रूप में जाने जाते हैं।आज इनके माता पिता को इन पर गर्व हैं।इनके गाँव मे लोक कला से जुड़े कई कलाकार हैं।पर आर्थिक तंगी की वजह से कला को छोड़ दूसरे काम करने को मजबूर हैं।1994 में इन्होंने अपने ग्रुप की शुरुआत की थी।आज संगीत में एक मुकाम पाकर खुश हैं।पर बीते दिनों को सोच कर कई बार बहुत ही जज्बाती हो जाते हैं।उन्होंने यहाँ तक कहा कि अगर सरकार कलाकारों पर ध्यान दे तो कला की नदी बहने लगेगी।जिसमें कलाकार डूब कर अपना जीवन सफल बना लेंगे।
● छायाकार संतोष कुमार यादव
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