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*है महबूब जां से भी बढ़कर तिरंगा।*
है महबूब जां से भी बढ़कर तिरंगा।
ये दिलकश है, दिलशाद, दिलबर तिरंगा।
वतन से मोहब्बत की है ये निशानी,
रखा कीजिए अपने घर पर तिरंगा।
ये है जश्ने आज़ादी का मौक़ा प्यारे,
हो हर शहर, हर गांव, हर घर तिरंगा।
पचहत्तर वां है साल आज़ादी का ये,
कि लहराओ, देखो नज़र भर तिरंगा।
हो जश्ने मसावात खुशियां मनाओ,
है भारत का रौशन मुक़द्दर तिरंगा।
किसी क़ैदो बन्द अब नहीं इसको ज़ेबा,
लगा दो हिमालय पर चढ़कर तिरंगा।
मगर जिनकी किस्मत में घर ही नहीं हैं,
वो फहराएंगे कैसे घर पर तिरंगा?
बचाना है एकता, अखण्डता वतन की,
तो हो जाइए सब एक सर तिरंगा।
✍️ ग़ुलाम ग़ौस ‘आसवी’,
धनबाद, झारखण्ड।
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