झरिया के मशहूर कवि तैयब खान नहीं रहे क्लिक करें और जाने।
*वे अपनी साफ़गोई के लिए याद किए जाते रहेंगे–इक़बाल हुसैन*
*उनकी रचनाएँ मानव-मन को झकझोर देने वाली होती थीं–ग़ुलाम ग़ौस ‘आसवी’*
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झरिया, धनबाद।
झरिया के मशहूर कवि और पत्रकार तैयब खान का निधन हृदय गति रुकने से हो गया। वे क़रीब68 वर्ष के थे। इकलौते पुत्र शमीम खान ने बताया कि होरलाडीह कब्रिस्तान में उनकी मिट्टी मंजिल होगी। कवि तैयब खान ने अपना जीवन शिक्षक के रूप में शुरू किया था। 1985 ई. में झरिया से प्रकाशित होने वाली ‘दैनिक चुनौती’ से उन्होंने अपनी पत्रकारिता की शुरुआत की थी। 1986 ई. में ‘जनमत’ अखबार और प्रभात खबर से भी जुड़े रहे। इस दौरान उनका रचना क्रम चलता रहा। 2016 में उनकी पहली काव्य संग्रह की पुस्तक ‘बात कहीं से भी शुरू की जा सकती है’ का प्रकाशन हुआ था। वे जनवादी लेखक संघ के झरिया इकाई के अध्यक्ष भी थे। उनके निधन पर झरिया के पत्रकार वर्ग और कवि-लेखकवर्ग में शोक की लहर दौड़ गई।
साहित्यिक संस्था ‘इदारा अहले क़लम, झरिया’ और ‘बज़्मे इल्मो अदब, धनबाद’ के द्वारा विशेष शोक-संवेदना व्यक्त की गई है। कवि तैयब खान के निधन पर झरिया के इदारा अहले क़लम, झरिया’ के अध्यक्ष डॉ इक़बाल हुसैन ने बताया कि कवि तैयब खान हिंदी भाषा के साथ-साथ उर्दू शायरी करते रहे हैं। उनकी हिंदी नज़्में काफी पसंद की गई। वे अपनी साफ़गोई के लिए याद किए जाते रहेंगे। हिंदी अख़बारों के साथ धनबाद से निकलने वाले इकलौते उर्दू अखबार ‘सारा बिहार’ से भी जुड़े रहे।
साहित्यिक संस्था ‘बज़्मे इल्मो अदब, धनबाद’ के संस्थापक ग़ुलाम ग़ौस ‘आसवी’ ने कहा कि तैयब खान अपनी लेखनी और अपने व्यक्तित्व के रूप में साफदिल इंसान थे। अपनी आर्थिक तंगी और गंभीर बीमारी के बावजूद भी अपनी व्यक्त रचनाओं के साहित्यिक जगत से जुड़े रहे। उनकी रचनाओं में सामाजिक और राजनीतिक विडंबनाओं का विरोध झलकता है। उनकी मुक्त छंद की रचनाएँ मानव मन को झकझोर देने वाली होती थीं। अब वे सिर्फ अपनी रचनाओं के माध्यम से हमेशा हमारे बीच रहेंगे।
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